पुराणों एवं वाल्मीकि रामायण के आधार पर अयोध्या का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन प्रत्यक्ष इतिहास के बारे में श्रुत एवं प्रत्यक्ष दोनों एक पंथानुगामी हैं। घटनाक्रम 1955 संवत सन 1898 का है जब 1955 में बड़ी जगह के महंत राम मनोहर प्रसाद जी महाराज अयोध्या के प्रमुख तीर्थ स्थलों पर प्रतीक के लिए तीर्थ स्थल नामोटटंकित पत्थर लगवाना आरंभ किए तो प्रथम स्थल श्री राम जन्मभूमि ही था। पत्थर लगवाते समय मुसलमानों ने आपत्ति की। विवाद न्यायालय तक गया। लगातार तीन वर्ष तक फैजाबाद न्यायालय में मुकदमा चला।
सन 1902 संवत 1994 में विद्वान न्यायाधीश एडवर्ड ने एक “एडवर्ड अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा” का गठन किया और सभा के प्रमुख निर्देशक बड़ी जगह के तत्कालीन महंत श्री राम मनोहर प्रसाद जी के बारे में कहा कि निसंदेह अयोध्या में ही श्री राम जन्मभूमि है और अयोध्या में मुसलमानों का कोई ऐतिहासिक स्थल नहीं है। शिलालेख को गड़वाने के बाद यदि कोई उखाड़ता है तो उसे ₹3000 जुर्माना अथवा 3 साल तक जेल की सजा दी जाएगी। आचार्य श्री राम मनोहर जी ने “एडवर्ड अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा” के साथ रुद्रयामल ग्रंथ” को आधार मानकर शिलापट्ट लगवाना शुरू किया।