रामलला के दाऊ – अयोध्या के योद्धा
इतिहास के संघर्ष का सुफल वर्तमान की चौखट पर है। भारत की लोकचेतना के राम का मंदिर बनने जा रहा। यह क्षण एक दिन में नही आया। आदालत में भी ऐतिहासिक किरदारों ने गवाही दी। पीढियां संघर्ष में गुजर गई। तब आदालत में भी सर्वानुमति बनी। वो रामलला के मंदिर के नगीने है, जो नींव के पत्थर के किरदार में हमेशा याद किए जाएंगे। ऐसे ही नींव के पत्थर हमे प्रेरणा देते हैं। अपने स्वाभिमान के लिए संघर्ष की प्रेरणा। संस्कार और शौर्य की प्रेरणा। अयोध्या आंदोलन महज रामलला के भव्य मंदिर के लिए आंदोलन नहीं था। यह तो भारत भूमि के सांस्कृतिक पुर्नजागरण का आंदोलन था। इस आंदोलन के ऐसे ही महनीय हस्ताक्षर रहें किरदारों का हम यहां जिक्र कर रहे, जिनकी याद हमारे स्मृति पटल पर अब उतनी जगह नही बना पा रही। उन्हीं में से एक थे दाऊ दयाल खन्ना।
बात 6 मार्च 1983 की है। उत्तर प्रदश के मुजफ्फरनगर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। सम्मेलन के संयोजन हिन्दू जागरण मंच के दिनेश त्यागी थे। उस सम्मेलन में गुलजारी लाल नंदा और रज्जू भैया (प्रो. राजेंद्र सिंह) सरीखे अति महत्वपूर्ण लोग आए थे। वहीं मंच से दाऊदयाल खन्ना ने अयोध्या-काशी-मथुरा की मुक्ति का प्रश्न पहले-पहल उठाया था। देश की आजादी के बाद यह पहली घटना थी, जब किसी सार्वजनिक मंच से यह मुद्दा उठा था। सम्मेलन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर तीनों धार्मिक स्थल- मथुरा-काशी-अयोध्या को हिन्दुओं को सौंपने की मांग हुई थी। उस सम्मेलन के बाद भी दाऊदयाल खन्न इस बात के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अयोध्या का मसला पूरी शक्ति के साथ उठाए। वे रज्जू भैया (प्रो. राजेंद्र सिंह) से अकसर हर आयोजन में यही बात कहते सुने जाते थे। आखिरकार वे सफल हुए। इसी दिशा में पहला कदम 1984 में उठाया गया। राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्मसंसद का आयोजन हुआ। 8 अप्रैल 1984 को संत समाज के 500 अति महत्वपूर्ण लोग वहां एकत्र हुए। इस सम्मेलन के पीछे विश्व हिन्दू परिषद थी।
दरअसल, अयोध्या से दो हजार किलोमीटर दूर वर्ष 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में धर्म-परिवर्तन की घटना सम्मेलन के केंद्र में थी। यहां चार सौ परिवारों ने सामूहिक रूप से इस्लाम कबूल कर लिया था। इनमें ज्यादातर पिछड़ी जाति के हिंदू थे। हिन्दू नेताओं ने इस घटना को देश में बढ़ते इस्लामिक खतरे के रूप में देखा था। अशोक सिंघल के प्रयास से दिल्ली में ‘विराट हिन्दू समाज’ बना था, जिसका पहला सम्मेलन दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ था। उन्हीं दिनों दाऊ दयाल खन्ना के जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। तब तक वे कांग्रेस पार्टी के नेता था। उस वक्त मुसलमानों की देखभाल के लिए कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता नामज स्थल पर कैंप लगाया करते थे। मुरादाबाद में ऐसा ही कैंप लगा था, जिसका इंतजाम कांग्रेस के दाऊदयाल खन्ना कर रहे थे।
एक बार नामज स्थल पर सूअर के घुस जाने की अफवाह फैल गई और उपद्रव के हालात पैदा हो गए। कुछेक मुस्लिम उपद्रवी तत्वों ने खन्ना और दूसरे कांग्रेसियों पर हमला कर दिया। इस घटना की जानकारी देने के लिए खन्ना दिल्ली पहुंचे। लेकिन, खन्ना को कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दरबार से निराश होकर लौटना पड़ा था। इस घटना के बाद उनका कांग्रेस पार्टी से मोह भंग हो गया। स्मरण रहे कि पहली धर्मसंसद (अप्रैल 1984) में प्रस्ताव पारित होने के बाद राम जन्मभूमि यज्ञ समिति बनी थी। दाऊ दयाल खन्ना को समिति का महामंत्री बनाया गया था। इसके बाद सीता माता की जन्मस्थली बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक की रथयात्रा निकाली गई थी, जिसका नेतृत्व स्वयं दाऊदयाल खन्ना कर रहे थे।
वैसे तो दाऊदयाल खन्ना उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। उन्होंने मुरादाबाद जिले की कांठ सीट से चुनाव जीता था। वे प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके थे। लेकिन, अनुभव के आधार पर कांग्रेस पार्टी की राजनीति से स्वयं को अलग कर लिया और धीरे-धीरे विहिप के नजदीक आ गए। फिर राम मंदिर आंदोलन के अगुवा लोगों में गिने जाने लगे।