भावविह्वल हैं रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की तपस्थलियां
ये भावविह्वल हैं। आनंद में निमग्न हैं, सदियां बीत गईं, प्रतीक्षा में। आखिर वह घड़ी आ ही गई। अयोध्या की आध्यात्मिक ऊर्जा के नाभि केन्द्र में रामलला का मंदिर बनने की आहट से रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अन्य तपस्थलियों की भी आस जगी। उन्हें महसूस होता है कि अब उनकी भी बारी आ गई। ऐसा हो भी क्यों न। राम के आगमन के पूर्व ऋषियों, मुनियों, साधु, सन्यासियों ने साधना की धूनी यहां रमाई।
मख भूमि(मखौड़ा) निहाल है। निहाल हो भी क्यों न, यही तो वह जगह है, जहां संतति विज्ञान के परम पुरोधा ऋंगी ऋषि नि:संतान चक्रवर्ती राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था। मंथर गति से बह रही मनोरमा नदी भी भावबिह्वल है, आनंदमग्ना इसलिए है कि उसके राम का मंदिर बन रहा है। वह पुलकित है। उसकी धारा में सघन स्पंदन है। क्योंकि अपने राम की सृजन भूमि को स्पर्शित कर वह युगों से बह रही है।
नेत्रजा सरयू की कल-कल धारा से उठने वाली जल निनाद का स्वर ऋंगि आश्रम में थोड़ा तेज हो गया है। यह आनंद के वर्षण का समय है। ऋंगि ऋषि आश्रम में इतिहास करवट बदल रहा। इन्हीं के तप और साधना का परिणाम रहा कि सूर्यवंश की सिमट रही वंशवेल को रोशन किया।
तमसा और तिलोदिकी के जल में भी आनंद का आलोड़न है। पंडित पुर के जिस गांव से तिलोदकी नदी निकलती है वहीं ऋषि रमणक की साधना भूमि है। ऋषि रमणक भी रामलला के मंदिर को लेकर आनंद में रमण कर रहे हैं। दो नदियों का जहां संगम होता है वह पवित्रता से भर उठता है, और तीर्थ बन जाता है। तिलोदकी और सरयू अयोध्या में जहां मिलतीं हैं, इस जगह आनंद का रससागर उमड़ घुमड़ रहा है।
मौके पर वीराने का सन्नाटा मांडव्य ऋषि की साधना भूमि लखनीपुर में पसरा हुआ है। यहीं से वह तमसा नदी निकली है, जिसका राम से गहरा संबंध है। वनवासी राम ने अयोध्या से निकलने के बाद पहली रात तमसा किनारे गौरा घाट पर बिताई। उदास बेबस गौरा घाटा भी गौरान्वित हो राम का गौरवगान कर रहा है।
चिर युवा बने रहने की कला जिस च्यवन मुनि ने बताई थी वह स्थान राजा पुरवा भी इसी रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र का एक हिस्सा है। राम के बहुत पहले अयोध्या के राजा शर्याति हुए। इनका गहरा रिश्ता मुनि च्यवन से था। मुनि की समाधि को देखरेख करने वाले बाबा राममनोरथ दास गदगद हैं। उनकी आंखों में उम्मीद का दिया जल रहा है। अब दिन अच्छे आने वाले हैं।
राम की खड़ाऊं को उनकी मर्यादा के साथ योगिराज भरत चौदह बरस तक भरत कुंड में जमीन पर सोते रहे। भ्रतृत्व प्रेम और त्याग का अनूठी और अलबेली भूमि अलमस्त है। बड़े भाई भव्य मंदिर में विराजेंगे, तो भरत की बारी भी आयेगी। अभी तक तो उनके राम परिस्थितिजन्य स्मृतिध्वंस के कारण वनवासी जीवन ही तो जी रहे थे।
अयोध्या अद्भुत है, और यहां के तीर्थ क्षेत्र भी सनातना के धर्मध्वजा को हर युग में फहराते रहे हैं। अयोध्या की भूमि ऐसी है जहां ऋषि-मुनि संस्कृति ने कदम दर कदम महनीय हस्ताक्षर किए हैं। काल के क्रूर थपेड़ों ने संस्कृति के इन स्वर्णिम अक्षरों को मिटाने की कोशिशें की। लेकिन ऋषियों मुनियों की आध्यात्मिक ऊर्जा की रश्मियां इस कदर भाषित हुई कि आज भी ये सांस्कृतिक चिन्ह के रूप में मौजूद है। साधना के इन केन्द्रों में सुगबुगाहट है, आंखों में व्याकुल प्रतीक्षा है कि इनके भी दिन राम जन्मभूमि की तरह बहुरेंगे। क्योंकि रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र है।
अयोध्या के सांसद लल्लू सिंह कहते हैं “आदरणीय अशोक सिंहल जी कहते थे 84 कोसी परिक्रमा ही अयोध्या का सांस्कृतिक परिधि है” केन्द्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इसकी महत्ता समझा, इसीलिए 84 कोसी परिक्रमा मार्ग को राजमार्ग में बदलने का संकल्प लिया।