अयोध्या पर्व अयोध्या के आत्मपरिचय का प्रयास है
पिछले सप्ताह दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में दूसरा अयोध्या पर्व मनाया गया। यह पर्व 28,29 फरवरी और 1 मार्च को आयोजित हुआ। तीन दिन के इस आयोजन में आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और लोक परंपरा के कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। अयोध्या और अवध इलाके के स्वाद को भी लोगों ने चखा। गांधी और रामराज्य, योग वशिष्ठ, अवध मिथिला संबंध और राम के विविध आयाम, अयोध्या की भावी संकल्पना विषय पर संवाद का आयोजन किया गया। राम चरित मानस का अखंड पाठ और हवन का भी आयोजन हुआ। अवधी कवि सम्मेलन और अवधी कलाकारों के रंगारंग कार्यक्रम से लोग मंत्रमुग्ध हो गए।
पर्व के उद्घाटन समारोह में रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, महासचिव चपंत राय, विजय कौशल जी महाराज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रैय होसबोले, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने हिस्सा लिया। इस पर्व के प्रेरणा स्रोत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने लोगों को संबोधित करते हुए अयोध्या पर्व बारें में बताया कि अयोध्या आंदोलन के सृजनात्मक पक्ष अनेक है, अनंत हैं। आंदोलन के पूर्णाहुति के पश्चात इस पर ध्यान दिया जाने लगा है। लेकिन जब ही इसे जानने का प्रयास होगा कि आंदोलन की पूर्णाहुति से पहले उसके सृजन के पक्ष को केन्द्र में रखकर पहली पहल किसने की और कब की। उसका स्वरूप क्या था? इसका उत्तर है अयोध्या पर्व। यह अयोध्या के आत्म परिचय का प्रयास है। वर्तमान अयोध्या पौराणिक काल में कैसी थी? उसका विराट स्वरूप क्या था? क्या थी उसकी सांस्कृतिक धारा? उसके मूल स्रोत क्या थे? उस आंदोलन की विरासत क्या है?
अयोध्या पर्व समाज की सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। उस समाज की सामूहिक शक्ति में सरकार भी आती है। अहो अयोध्या पुस्तक से हम जानेंगे कि अयोध्या फैजावाद का एक नगर भर नही है। अयोध्या विराट है। उस विराट अयोध्या में पूर्वी उत्तर प्रदेश के कितने जिले मिले हुए हैं।स्वामी राम की जीवनी से पता चला कि अयोध्या के इर्द-गिर्द योगियों के लिए अनगिनत स्थान है। हमारी परंपरा में कोई अगर योग के रास्ते पर चलने की कोशिश करता है तो उस स्थान पर चुपचाप जाता है और रहता है। उसके बाद आत्मनिरीक्षण करता है। उसके बाद ईश्वर से जुड़ने की कोशिश करता है।
आज अध्यात्म, राजनीति, समाज सेवा, धर्म के रास्ते में जिसको भी कुछ पहल करनी है। कदम आगे बढ़ाना है उन्हें अयोध्या के भरत कुंड जाना चाहिए। वह ऐसा है कि जब आप जाएंगे तो लगेगा कि आप नई दुनिया में आ गए हैं। अहो अयोध्या पुस्तक के लेखकों ने ऐसे स्थानों को खोजा है। उनकी हालत कैसी है उसका पुरूद्धार कैसे होगा। यह प्रश्न हमारे सामने है। यह प्रश्न भी जब हमारे बीच नृत्यगोपाल दास, विजय कौशल जी महाराज जैसे संत और सामाजिक क्षेत्र मे काम करने वाले दत्ता जी जैसे महापुरूष हमारे साथ है तो हम उस विराट अयोध्या की यात्रा हम कर सकतें है।