अयोध्या आंदोलन के ध्वजवाहक स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती वही शंकराचार्य थे, जिनकी अध्यक्षता में पांचवीं धर्मसंसद की विशेष बैठक हुई, जहां कारसेवा की तारीख 6 दिसंबर तय हुई। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती 1989 में ज्योतिषपीठ बद्रीकाश्रम के शंकराचार्य बने।
स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जोर-शोर से इस मत के हिमायती थे कि रामलला ही उस स्थान के मालिक हैं। यह बात सभी पक्षों को मान लेनी चाहिए। उस स्थान पर सिर्फ रामलला के भव्य राममंदिर का निर्माण होगा। वासुदेवानंद सरस्वती की अध्यक्षता में अप्रैल 1991 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चौथी धर्मससंद आयोजित की गई थी। इसमें विवादित इमारत श्रीराम जन्मभमि न्यास को सौंपने की मांग की गई थी।
ज्योतिष पीठ पर अधिकार को लेकर स्वरूपानंद से इनका लगातार मतभेद बना रहा। इसका फायदा लेने की कोशिश सरकार अंदरखाने करती रहती थी, ताकि राम मंदिर आंदोलन के वेग को प्रभावित किया जा सके। यही वजह रही कि स्वरूपानंद हमेशा राम जन्मभूमि आंदोलन के खिलाफ रहे और आंदोलन के साथ नहीं आए।
बहरहाल, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती राम मंदिर के समर्थन में खुलकर अपनी बात कहते थे। नवंबर 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक के साथ मंच साझा करते हुए उन्होंने कहा था- ‘अयोध्या में मंदिर के प्रमाण मिलने के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय ने टायटल सूट को पार्टीशन सूट में तब्दील कर दिया है। यह देश के हिन्दुओं की जनभावना का अनादर है। इस मामले में जल्द फैसला होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो सरकार का यह कर्तव्य है कि वह संसद में कानून बनाए। इसी में सरकार का हित होगा।’