राम भारत की आत्मा हैं – दत्तात्रैय होसबोले
अयोध्या, सरयू और भगवान राम की महिता सिर्फ अयोध्या तक सीमित नही। यह चतुर्भुवन तक है। सार्वकालिक है। अयोध्य़ा और राम जी से जुडा हर कार्यक्रम उतना ही पावन है जितनी अयोध्या है। पिछले अयोध्या पर्व और इस बार के अयोध्या पर्व में एक अंतर है। अयोध्या परंपरा से सांस्कृतिक धरोहर से चरित्र से इतिहास से सब प्रकार से वह राम जी की जन्मभूमि है। लेकिन उसे विवादित करके रखा गया था। आज तक विवादित भूमि कहते थे। ये कब तक विवाद से मुक्त होगा। लेकिन पिछले एक वर्ष से इसमें जो परिवर्तन आया है इस कारण से आज का यह अयोध्या पर्व विशेष महत्व रखता है। अयोध्या के बारे में भारतीय लोगों ने मोक्षदायिनी नगरों में पहला स्थान है। अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका, पुरी द्वारावति चैव। वैसे अयोध्या के सामने सारे विश्व को नतमस्तक होना चाहिए लेकिन कुछ दशकों से दिल्ली के आदेश का इंतजार अयोध्या को करना पड़ा।
सांस्कृतिक, धरोहर, शासन और न्यायपालिका के सामने अपने स्थान को प्राप्त करने के लिए सालों से प्रतीक्षा में थे। वह प्रतीक्षा के साल समाप्त होने के पश्चात यह अयोध्या पर्व है। दिल्ली और अयोध्या अलग है। वहुत वर्ष पूर्व माननीय रामबहादुर राय ने कहा था दिल्ली भारत नही है। दिल्ली अलग है, भारत अलग है। क्योंकि भारत को भारत नही रहने देना दिल्ली का स्वाभाविक कर्म बन गया है।
भारत भारत बनने के लिए तैयार है। अयोध्या अपने सांस्कृतिक वैभव को प्रतिष्ठित करना चाहती। लेकिन दिल्ली इसमें हमेशा अयोध्या के वर्चस्व को प्रभावित करती रही। इसलिए दिल्ली में अयोध्या पर्व होना मायने रखता है। दिल्ली पर जब अयोध्या का प्रभाव होगा तो भारत के पुनर्वोदय का नया द्वार खुलेगा। अयोध्या के प्रभाव का मतलब है मर्यादापुरोषत्तम राम जी का प्रभाव होना। रामजी भारत में सिर्फ राजा नही माने जाते। कोई आराध्य की तरह ही नही पूजे जाते। राम भारत की आत्मा हैं। भारत की सांस्कृतिक पहचान है। राम भारत के के अतीत हैं, वर्तमान और भविष्य भी हैं। इसे जो समझते हैं वही अयोध्या को समझेंगे। इसी संदेश को अयोध्या पर्व दे रहा है। पर्व का मतलब है त्यौहार। रामायण में अध्याय कांड के रूप में है। जिसमें अयोध्या कांड भी है। महाभारत में अध्याय को पर्व रूप मिलता है। यहां रामायण और महाभारत दोनो के संदेश देना की एक कोशिश है। यह संदेश है संस्कृति के, धर्मस्थापना के और राष्ट्रीय अस्मिता का। अयोध्या पर्व डा. राममनोहर लोहिया के रामायण मेला की याद दिलाता है। डा. लोहिया समाजवादी थे। लेकिन लोहिया जी ने राम, कृष्ण और शिव पर लेख लिखे। उस लेख में डा. लोहिया ने राम, कृष्ण और शिव कौन है उनके महत्व क्या है यह हम सबको बताया।
डा. राममनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेता ने वर्षों तक चित्रकूट में रामायण मेला का आयोजन किया इसका क्या कारण था। डा. लोहिया जी ने रामायण मेला के जरिए राम जी चरित्र को सामने रखने का प्रयास किया। यह अयोध्या पर्व उसी रामायण मेला की याद हमें दिलाता है। आज समाजवादियों में इसे लेकर अलग राह दिखती है। डा. लोहिया जी की कही बतों को हम यहां याद दिलाना चाहते हैं “मै आज द्वारिका रामेश्वरम अयोध्या और काशी जैसे महानतम तीर्थस्थलों की उपेक्षा पर जोर देना चाहता हूं जहां 80 लाख लोग प्रतिवर्ष यहां यात्रा करते हैं। अच्छे आवासों और मकानों की प्रदर्शनियां दिल्ली में करना धन का अपव्यय है जबकि थोडे से खर्चे में इन महान तीर्थ स्थलों का जीर्णोद्धार हो सकता है। और ये शिक्षाप्रद उदाहरण बन सकते हैं” उस दिनों की सरकरों के लिए लोहिया जी ने लिखा था “भारत सरकार इस काम से भागती है शायद इस आधार पर कि ये हिन्दू तीर्थ स्थल हैं और ऐसा प्रकट करना चाहती है कि वह स्वयं हिन्दू नहीं है। ईसाई मुसलमान और भारत की जनता के प्रतिनिधि के रूप में कोई भी समझदार आदमी लोककल्याण की देसी नीतियों के आधार पर भारत के महान तीर्थ स्थलों के जीर्णोद्धार के लिए आंदोलन करेगा” ऐसा समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया ने कहा था। अयोध्या वीतरागी है, अयोध्या निस्पृय है, अयोध्या में बह रही सरयू के पानी में भी एक तरह की नसंगता है। भक्ति में डूबी अयोध्या का चरित्र अपने नायक की तरह धीर शांत और निरपेक्ष है। अयोध्या एक लक्षण है एक प्रतीक है मजहबी असहिष्णुता विरूद्ध प्रतिकार का। भारत राष्ट्र के आहत स्वाभिमान का। अयोध्या एक संकल्प हैं अपने प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े रहने का। अयोध्या शमसीर से निकली उस विचारधारा का जो सर्वपंथ समादर, सर्वाग्रही सहिष्णुता को कुचलती है उसके सामने डटकर खड़ें रहने का। अयोध्या स्नेह प्रेम बंधुता का एक केन्द्र भी है।