चर्चा के साथ चरित्र में भी शामिल हो अयोध्या
आज अयोध्या का नाम हर एक व्यक्ति की जुबान पर है। गली-चौराहों से लेकर घर-दुकान-दफ्तर सभी जगह अयोध्या लोगों की चर्चा के केन्द्र में है। गत कुछ दशकों में अयोध्या में राम मंदिर का प्रश्न भारत की सनातन परंपरा के पुनरुत्थान का प्रतीक बनकर उभरा है। इस मुद्दे की तपिश से जो रोशनी पैदा हुई, उसमें भारतीय जनमानस ने अपने अतीत की उंचाई और गिरावट दोनों को जाना और समझा है। वह इस रोशनी के सहारे अब आगे बढ़ना चाहता है। अतीत की उंचाईयां उसे प्रेरणा दे रही हैं जबकि गिरावट के क्षण उसे बार-बार सावधान भी करते हैं। वास्तव में अयोध्या वह ज्योति पुंज है जिसके आलोक में हमारा देश स्मृति भ्रंस की त्रासदी से मुक्त हो रहा है। इतिहास गवाह है कि जब कोई मुद्दा जनता की भावना से इस तरह जुड़ जाता है तो उसका समाधान होकर ही रहता है। हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह बात पूरी तरह सच साबित हो गई है।
यह सच है कि आज अयोध्या और राम मंदिर एक-दूसरे के पर्यायवाची हो गए हैं। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि अयोध्या के आयाम बहुत व्यापक हैं। ज्ञानीजन कहते हैं कि ‘बड़ी है अयोध्या’। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम लोगों ने 2019 की शुरुआत में 4 से 6 जनवरी के बीच दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में अयोध्या पर्व का तीन दिवसीय आयोजन किया था। इन तीन दिनों में अयोध्या और आस-पास के जिलों में भगवान राम से जुड़े कई गुमनाम धरोहर स्थलों की प्रदर्शनी लगाई गई। इसी के साथ आयोजन में विचार गोष्ठियों, औपचारिक कार्यक्रमों और लोक परंपरा से जुड़े विविध आयामों को भी शामिल किया गया ताकि देश-विदेश के लोगों का अयोध्या के वृहत्तर सांस्कृतिक और पौराणिक स्वरूप से साक्षात्कार हो सके।
जाने-माने पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने इस आयोजन को न केवल अयोध्या पर्व का विशिष्ट नाम दिया, बल्कि इसे साकार करने में सभी प्रकार से मदद भी की। अयोध्या के बाहर इस तरह का विशाल आयोजन मेरे लिए एक नया अनुभव था, लेकिन हनुमान जी की कृपा से सभी कठिनाइयां सुलझती गईं। अयोध्या के लोगों ने मेरे इस प्रयास को अपना आशीर्वाद दिया। इसी के साथ दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों से भी लोगों ने आयोजन की तैयारियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। और जब 4 जनवरी को पूज्य नृत्य गोपालदास जी और पूज्य अवधेशानंदजी महाराज ने अपने आशीर्वचन से अयोध्या पर्व की शुरुआत की तो लगा जैसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र का परिसर अयोध्यामय हो गया है। जनवरी में दिल्ली का मौसम अपने अतिवादी स्वरूप में होता है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग अयोध्या पर्व को देखने, समझने और उसका आनंद उठाने के लिए आए।
अयोध्या पर्व के आयोजन के कुछ हफ्ते बाद ही पूरे देश में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ने लगी। अपने राजनीतिक दायित्व को ध्यान में रखते हुए मुझे भी इसमें लगना पड़ा। लेकिन अयोध्या पर्व की भीनी-भीनी सुगंध मेरे मन में हमेशा समाई रही। प्रभु राम की कृपा और अयोध्या की जनता के प्रेम ने जब मुझे एक बार फिर संसद के लिए चुना तो मैंने तुरंत अयोध्या पर्व के दूसरे आयोजन के लिए अपने वरिष्ठजनों और कार्यकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श प्रारंभ कर दिया। कई व्यवहारिक कारणों को ध्यान में रखते हुए तय किया गया कि दूसरा आयोजन भी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में किया जाए। हालांकि इसके बाद के आयोजन मुंबई सहित देश के विभिन्न शहरों में हों, इसकी जरूरत को भी सभी लोगों ने महसूस किया।
अयोध्या पर्व का जो बीजारोपण जनवरी, 2019 में किया गया था, उसमें आज कई और कोपलें फूट गई हैं। उसके दैहिक और वैचारिक दोनों स्वरूपों में विस्तार की जरूरत महसूस हो रही है। इसे एक आयोजन के साथ-साथ निरंतर चलने वाले अभियान का स्वरूप देने पर भी गंभीरता से विचार चल रहा है। वास्तव में अयोध्या पर्व में जहां एक ओर कला और संस्कृति की उत्सवी छटा है, वहीं इसमें उभरते हुए नए भारत की सामाजिक-आध्यात्मिक चेतना को आदर्श रूप में गढ़ने की असीम क्षमता भी है। मंदिर मुद्दे के चलते आज जनभावना जिस मुकाम पर है, उसे हम अयोध्या पर्व के माध्यम से नए-नए सकारात्मक आयाम दे सकते हैं ताकि अयोध्या के उदात्त विचार और आदर्श हमारे राष्ट्रीय चरित्र का हिस्सा बन जाएं। इसके लिए हमें बहुत कुछ नया करने की भी जरूरत नहीं है। हमें तो बस वह राख हटानी है जिसके नीचे अयोध्या की विराट चेतना देश के कण-कण में हजारों वर्षों से प्रज्ज्वलित है।
संक्षेप में कहें तो अयोध्या पर्व के माध्यम से हमें देश के सामने रामराज्य की एक युगानुकूल संकलप्ना प्रस्तुत करनी है। उदाहरण के लिए यदि हम सिविल सोसाइटी, कार्बन फुटप्रिंट, अक्षय विकास, प्रकृति केन्द्रित विकास और व्यवस्था परिवर्तन जैसे सिद्धांतों को रामराज्य के फ्रेम में रखकर प्रतिपादित करते हैं तो भारत के जनमानस में इन सिद्धांतों की ग्राह्यता बढ़ जाएगी। इसी तरह हमें जोर देकर कहना होगा कि वर्तमान संदर्भ में रामराज्य कोई अचानक होने वाली घटना नहीं, बल्कि क्रमिक उपलब्धि से जुड़ी अवधारणा है जिसे हमें अपने-अपने स्तर पर हासिल करना है। उदाहरण के लिए यदि हमारे गांव या मोहल्ले में शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, पर्यावरण आदि के स्तर पर कुछ बेहतर होता है तो हम वास्तव में कुछ कदम रामराज्य की ओर बढ़ते हैं। इस प्रकार मैं चाहता हूं कि अयोध्या पर्व हम सभी के भीतर बैठे राम को जाग्रत करने का पर्व बनकर समाज में प्रतिष्ठित हो। मेरी दृष्टि में अयोध्या पर्व की सार्थकता इस बात में है कि यह भारतीय समाज की रचनाधर्मिता को अभिव्यक्त करने का एक प्रभावी मंच बने।
बात तब बनेगी जब हम रामराज्य की छोटी-छोटी झांकियां व्यवहार के धरातल पर भी प्रस्तुत करते चलें। इसके लिए अयोध्या की पवित्र भूमि से पहल हो, यह हम सभी का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए ‘राजा’ और ‘प्रजा’ को सरकार और समाज के फ्रेम में रखते हुए हमें योजना बनानी होगी। यदि हम ऐसा कर पाए तो वह दिन दूर नहीं जब अयोध्या का अतीत ही नहीं बल्कि इसका वर्तमान भी अनुकरणीय बन जाएगा। स्वाभाविक रूप से यह सब तीन दिन के आयोजन से ही नहीं होने वाला। यह आयोजन तो एक पूर्व पीठिका है। अयोध्या पर्व आने वाले समय में रामराज्य का निमित्त बने, इसके लिए हमें हर दिन-हर पल सचेत और सक्रिय रहना होगा। यह ऐसा लक्ष्य है जिसे कोई अकेले अपने दम पर हासिल नहीं कर सकता। इसे तो हम सभी को मिलकर ही हासिल करना होगा।